काम करने का आसान तरिका।
नमस्कार दोस्तों /--
आज हम एक बहुत ही महत्वपूर्ण और जीवन बदल देने वाले विषय पर चर्चा करने जा रहे हैं "काम को अपना बनाना है"। यह सिर्फ एक वाक्य नहीं, बल्कि एक सोच है, एक दृष्टिकोण है, जो अगर हमारे जीवन में उतर जाए, तो सफलता को कोई रोक नहीं सकता। बहुत से लोग काम करते हैं, लेकिन कुछ लोग ही ऐसे होते हैं जो अपने काम को अपना बना लेते हैं। यही लोग इतिहास बनाते हैं, समाज में बदलाव लाते हैं, और अपने जीवन में संतोष और सफलता दोनों प्राप्त करते हैं।
काम को अपना बनाना क्यों जरूरी है।
हर इंसान को जीवन में कुछ न कुछ करना ही होता है कोई नौकरी करता है, कोई व्यापार, कोई सेवा करता है तो कोई कला से जुड़ा होता है। लेकिन फर्क तब आता है जब हम अपने काम को केवल "करने" के लिए नहीं, बल्कि जीने के लिए अपनाते हैं। अगर हम अपने काम से जुड़ाव नहीं महसूस करते, तो वह बोझ बन जाता है। लेकिन जब हम उस काम को अपना समझते हैं, उसमें अपना मन, आत्मा और दिल लगाते हैं, तो वही काम हमें आगे ले जाता है।
सोचिए एक कलाकार की तरह|
एक पेंटर जब कैनवास पर ब्रश चलाता है, तो वह सिर्फ रंग नहीं भरता, वह अपनी आत्मा उड़ेलता है। एक म्यूज़िशियन जब सुर छेड़ता है, तो वह ध्वनि नहीं, भावना देता है। ठीक उसी तरह जब हम भी अपने किसी भी काम को कला की तरह लें, तो वह साधारण नहीं रह जाता, वह असाधारण बन जाता है।
काम में लगाव का मतलब यह नहीं कि सब आसान होगा।
नहीं, मुश्किलें होंगी, थकावट होगी, असफलताएँ भी होंगी। लेकिन जब हम अपने काम को अपना मानते हैं, तो हम उन कठिनाइयों से डरते नहीं, बल्कि उन्हें सीखने और आगे बढ़ने का ज़रिया मानते हैं।
"काम को अपना बनाना" का असली मतलब क्या है।
कर्तव्य को पूजा समझना: जैसे एक भक्त मंदिर में जाकर पूजा करता है, वैसे ही हमें अपने काम के प्रति श्रद्धा रखनी चाहिए।
गन और समर्पण: आधे मन से किया गया कोई भी काम न खुद को संतोष देता है, न दूसरों को। लेकिन जब दिल से किया जाए, तो वह कमाल करता है।
जिम्मेदारी लेना: जब हम काम को अपना समझते हैं, तो हम उसमें जिम्मेदारी महसूस करते हैं। फिर हम बहाने नहीं बनाते, समाधान ढूंढते हैं।
नवाचार और सुधार: जब हम किसी काम को प्यार करते हैं, तो हम उसमें बेहतर करने की कोशिश करते हैं। हम रचनात्मक बनते हैं, और हर दिन कुछ नया सोचते हैं।
महापुरुषों से सीखें।
- महात्मा गांधी ने अपने कार्यों को अपना धर्म माना।
- अब्दुल कलाम ने विज्ञान को सिर्फ काम नहीं, देशसेवा का ज़रिया बनाया।
- सचिन तेंदुलकर ने क्रिकेट को अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बना दिया।
इन सबने अपने-अपने क्षेत्र के काम को सिर्फ़ आजीविका नहीं, अपने अस्तित्व का हिस्सा बना लिया। इसीलिए वे महान बन सके।
क्या हम भी ऐसा कर सकते हैं।
बिलकुल कर सकते हैं। फर्क सिर्फ़ नजरिये का है। जब आप सुबह उठते हैं, तो सोचें कि आप जो करने जा रहे हैं, वह सिर्फ कमाने के लिए नहीं, बल्कि खुद को बनाने के लिए है। आप जो कर रहे हैं, उससे किसी न किसी को फर्क पड़ता है। यह भावना ही आपको आपके काम से जोड़ देगी।
अंत में| मैं यही कहूंगा कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता। जो फर्क करता है, वह है हमारा रवैया। जब हम अपने काम को अपना बना लेते हैं, तो वही काम हमें पहचान देता है, सम्मान देता है, और सबसे जरूरी बात आत्मसंतोष देता है।
तो आइए, आज से ही एक संकल्प लें काम को सिर्फ़ करने के लिए नहीं, उसे जीने के लिए अपनाएं।
क्योंकि जब हम अपने काम को अपना बना लेते हैं, तो हम सिर्फ काम नहीं करते, हम इतिहास बनाते हैं।
धन्यवाद।
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