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डर ख़त्म और हौसला शुरु।

 जिंदगी में हर कोई इंसान कुछ ना कुछ करना चाहता है।, कुछ बनना चाहता है, कुछ साबित करना चाहता है। लेकिन हर किसी के रास्ते में एक दीवार खड़ी होती है ।डर!

डर वही जो हमें कोशिश करने से रोकता है, वही जो हमारे कदमों में ज़ंजीरें डाल देता है। डर कि अगर मैं हार गया तो डर कि “लोग क्या कहेंगे? डर कि मैं कर नहीं पाया तो लेकिन याद रखो डर जीतने की नहीं, तोड़ने की चीज़ है।और जब तुम डर को तोड़ देते हो, तभी हौसले अपने आप जुड़ जाते हैं।


🎯 डर की असली पहचान:-

डर असल में कोई राक्षस नहीं होता, न ही वो कोई पहाड़ होता है।वो तो हमारे दिमाग का एक छोटा सा ख्याल होता हैजो बार-बार कहता है, तू नहीं कर सकता।

लेकिन असली सवाल यह है। कौन कहता है? वो डर या तू खुद डर कभी भी बाहर नहीं होता, वो हमेशा अंदर होता है। और जब अंदर से तुम खुद को कह दो 'मुझे अब नहीं रुकना”तो डर की कोई औकात नहीं रहती।


👊डर को तोड़ने की पहली शर्त – सामना करना:-

हर डर तब तक बड़ा लगता है जब तक तुम उसका सामना नहीं करते।याद करो, बचपन में अंधेरे से डर लगता था लेकिन जैसे ही किसी ने लाइट ऑन की, डर गायब हो गया।ज़िंदगी में भी हर डर की “लाइट” होती है सामना।जब तुम अपने डर का सामना करते हो, तो तुम सीखते हो कि वो उतना बड़ा था ही नहीं जितना तुमने समझ रखा था।

👍 कोशिश करो – अगर तुम्हें लोगों की बातों से डर लगता है,

तो वही काम करो जिसकी वजह से लोग कुछ कह सकते हैं।अगर असफलता का डर है, तो एक बार ज़रूर असफल हो जाओ। क्योंकि जब तुम गिरोगे, तभी तुमको पता चलेगा कि गिरने के बाद भी जिया जा सकता है।और फिर उठने का मज़ा ही कुछ और होता है।


🙅 डर को तोड़ने की दूसरी शर्त – हौसला जोड़ना:-

|हौसला कोई चीज़ बाहर से नहीं आती|

हौसला तुम्हारे अंदर का वो इंजन है जो मुश्किल वक्त में भी कहता है 'चलो, एक बार और कोशिश करते हैं।'हर इंसान के अंदर हौसला होता है, बस फर्क इतना है कि कोई उसे जगा लेता है और कोई उसे सुला देता है।

जब तुम डर को तोड़ते हो, तो तुम्हारे अंदर वो ताकत खुद-ब-खुद जग जाती है।याद रखो डर कमजोर दिल को तोड़ता है, और हौसला मजबूत दिमाग को जोड़ता है।तुम्हारा काम है डर की दीवार गिराकर अपने हौसले का पुल बनाना।


🚵 ज़िंदगी की असली रेस:-

ज़िंदगी एक ऐसी रेस है जहां तुम्हारा असली मुकाबला किसी और से नहीं,बल्कि तुम्हारे डर और हौसले के बीच होता है।डर बार-बार कहेगा “तू नहीं कर पाएगा।”

और हौसला कहेगा “तू कोशिश तो कर।”जो अपने डर की सुनता है, वो हमेशा रुक जाता है।और जो अपने हौसले की सुनता है, वो रास्ता बना लेता है चाहे पत्थर का ही क्यों न हो।


📖डर तोड़ने की तीन कुंजियां:-

1. सोच बदलो:

जब तुम किसी चीज़ से डरते हो, खुद से पूछो “क्या ये डर मुझे रोक रहा है या सिखा रहा है?

अगर रोक रहा है, तो उसे तोड़ो।अगर सिखा रहा है, तो सीखो और आगे बढ़ो।

2. छोटी-छोटी जीतें:

बड़े डर को तोड़ने के लिए छोटे कदम लो। जैसे, पब्लिक में बोलने से डर लगता है। पहले 2 लोगों से बोलो, फिर 10 से, फिर 100 से।धीरे-धीरे डर टूटेगा, और हौसला बढ़ेगा।

3. खुद पर भरोसा रखो:

दुनिया के सारे डर उसी इंसान को हराते हैं जो खुद पर शक करता है।जब तुम अपने आप पर भरोसा कर लेते हो,तो डर अपनी जगह खुद छोड़ देता है।

☝️हौसला जोड़ो — क्योंकि ये ज़िंदगी दोबारा नहीं मिलेगी:-

कितने लोग हैं जो सिर्फ डर की वजह से अपनी ज़िंदगी आधी जीते हैं।कोई बोलने से डरता है, कोई शुरू करने से, कोई हारने से लेकिन क्या तुमने कभी सोचा

अगर कल तुम्हारा आखिरी दिन हो, तो क्या तुम यही डरते रहना चाहोगे? ज़िंदगी हमें रोज़ एक मौका देती है “आज कुछ नया करने का।”अगर तुम डर के पीछे छुपे रह गए,

तो ज़िंदगी निकल जाएगी और पछतावा रह जाएगा।इसलिए जो डर दिखे, उस पर चल पड़ो। जो मुश्किल लगे, उसे छू लो। जो लोग कहें “तू नहीं कर सकता”, उन्हें मुस्कुराकर दिखा दो कि तू कर सकता है।


🌄याद रखो - डर स्थायी नहीं, हौसला अमर है:-

डर समय के साथ बदल जाता है, लेकिन हौसले से की गई कोशिश हमेशा इतिहास बन जाती है। भगत सिंह, अब्दुल कलाम, नेल्सन मंडेला, या फिर एपीजे अब्दुल कलाम 

इन सबके सामने भी डर था। लेकिन फर्क इतना था कि उन्होंने डर को तोड़ा, और हौसले को जोड़ा। तभी वे नाम अमर हुए।


🙏 अंतिम संदेश...

अगर ज़िंदगी में आगे बढ़ना है तो सबसे पहले अपने डर की पहचान करो, फिर उसे तोड़ डालो। फिर अपने हौसले को जोड़ो और उसे अपने सपनों से बाँध दो। जब तुम्हारा हौसला तेरे डर से बड़ा होगा,

तब तू हर लड़ाई जीत जाएगा। डर को तोड़ो, हौसले को जोड़ो क्योंकि ज़िंदगी में जीत उसी की होती है जो डर को सीढ़ी बना लेता है।डर गिराता है, हौसला उठाता है।डर रोकता है, हौसला चलाता है।डर खत्म करो, और देखो ज़िंदगी कैसे मुस्कुराने लगती है।

👉इस बाद को हमेशा याद रखना!' जब डर टूटेगा,तब हौसला बोल उठेगा।अब मेरी बारी है,अब मैं जीत कर दिखाऊंगा।

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